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भारतीय अर्थव्यवस्था में भारतीय मुसलमानों का योगदान !!

भारत 140 करोड़ लोगों का देश है जिसमें 79 हिंदू , 15% मुस्लिम , 2.7% क्रिश्चियन , 1.7 % सिख , 0.7 % बुद्ध , और 0.4% जैन रहते है। संख्या के हिसाब से देखें तो भारत में करीब 22 से 25 करोड़ मुसलमान रहते है। 



तुम आज हम बात करते हैं भारतीय अर्थव्यवस्था में भारतीय मुस्लिम समुदाय के योगदान की। तो साल 1947 से आज 2022 तक मुस्लिम समुदाय की आर्थिक स्थितियों में ज्यादा बदलाव नहीं आया है। 



साल 2015 में द इकनोमिक टाइम्स ने एक रिपोर्ट पब्लिश की थी , जिसके अनुसार भारत में 15% मुसलमान है , जिनका भारतीय अर्थव्यवस्था में 3% से भी कम का योगदान है। 


                            
                               ( संपूर्ण रिपोर्ट यहां पढ़ें )   

इस रिपोर्ट में बताया गया था कि बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में 500 प्रमुख कंपनियों में 2324 डायरेक्टर्स और सीनियर एक्जीक्यूटिव है जिसमें भारतीय मुसलमान की संख्या सिर्फ 62 है जो की सिर्फ 2.6 % है। 

मुंबई स्टॉक एक्सचेंज प्रमुख 100 कंपनियों के 587 डायरेक्टर्स व सीनियर एक्जीक्यूटिव है , जिसमें सिर्फ 27 भारतीय मुस्लिम है। 

लेबर फोर्स सर्वे 2017-18 के अनुसार भारतीय मुसलमानों पर भारत की अर्थव्यवस्था में सिर्फ 11% का योगदान है। साल 2006 में प्रकाशित सच्चर कमिशन रिपोर्ट के अनुसार गरीब ज्यादा है और शिक्षित लोग कम है। इसी रिपोर्ट के अनुसार सरकारी नौकरियां भारतीय मुसलमानों का योगदान सिर्फ 5% हैं जोकि आबादी के लिहाज से बहुत कम है। 


                              ( संपूर्ण रिपोर्ट यहां पढ़ें )

गली 2014 – 15 मैं यह आंकड़ा बढ़कर सिर्फ 8.5% तक ही बढ़ा है , जबकि इनकी आबादी बढ़कर 15% हो गई है। बात अगर करें टैक्स देने की तो भारतीय मुसलमान का योगदान सबसे कम अनुमान किया जाता है। 

ऐसा इसलिए क्योंकि भारत में सिर्फ 2.3% लोग ही टैक्स देते हैं और इन सब में टैक्स सिर्फ वह लोग देते हैं जिनकी सैलरी आती है और मुसलमानों का नौकरियों में इतना योगदान है ही नही कि वे लोग टैक्स दें पाए। 



इसीलिए भारतीय मुसलमानों को सरकारी नौकरियों में अपना योगदान बढ़ाना होगा और इसी के लिए उन्हें ज्यादा से ज्यादा शिक्षा और स्किल प्राप्त करनी होगी। आप सब को जानकर हैरानी होगी कि भारतीय जनसंख्या में 15% मुस्लिम होने की बावजूद शिक्षित लोगों में इनका योगदान बहुत कम है।



भारत में अशिक्षित मुसलमान का प्रतिशत करीब 42.7 का है जो कि दुनिया में सारे मुसलमानों में सबसे ज्यादा है। इन सबमें मुस्लिम लड़कियों का योगदान और भी कम है। शिक्षा के मामले में भारतीय मुसलमान भारत का सबसे पिछड़ा वर्ग है।

भारतीय मुसलमानों का भारत की स्कूल कॉलेजों में एडमिशन उनकी आबादी के हिसाब से बहुत कम है। इसका मतलब यह है की भारतीय मुसलमान अपने बच्चों को स्कूल व कॉलेजों में बहुत भेजते है। 

सेंसस 2011 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में करीब 36.4% हिंदू , 32.% सिख , 25.6 % बुद्ध धर्म के और 25.9 % क्रिश्चियन वर्ग के लोग अशिक्षित है। 

साल 2011 में भारत की साक्षरता दर करीब 36.9% थी। अब अगर आपको लगता है कि यह सारा डाटा साल 2011 का है और अभी स्थितियां सुधर गई होंगी तो आप गलत है। शिक्षा के मामले में मुसलमान समुदाय अब और भी पीछे हो गए हैं। 


बात अगर वर्तमान समय की की जाए तो भारतीय मुसलमान भारत में शिक्षा के मामले में एससी एसटी वर्ग से भी पिछड़ा हुआ है। साल 2018 की नेशनल सर्वे सैंपल की रिपोर्ट के अनुसार मुस्लिम बच्चों का प्राइमरी शिक्षा में एडमिशन बहुत कम है।

भारतीय मुसलमान समुदाय में कई जगह ऐसी धारणा है और लोग आज भी मानते हैं कि सिर्फ कक्षा आठ से दस्तक पढ़ा दो वही बहुत है।जो कि सही नही है।  इसी रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 17 % मुस्लिम लड़के तथा 22% मुस्लिम लड़कियां कभी स्कूल नहीं गए हैं।

ऐसी ही एक रिपोर्ट जो की ऑल इंडिया सर्वे ऑफ हायर एजुकेशन नामक संस्था ने निकाली थी उसके अनुसार भी मुस्लिमों की शिक्षा की यही दशा देखी गई है। 

भारत में मुसलमान वर्ग के लोग आज भी अत्यंत गरीबी में जूझ रहे हैं। इसका मुख्य कारण यह भी है की एक गरीब है में भी मुस्लिम लोग ज्यादा बच्चे पैदा करते हैं जिससे उन्हें अच्छी शिक्षा नहीं मिल पाती और नौकरियों में उनकी संभावना कम होती जाती है। इन सबसे उनकी आय में सुधार होने की जगह उनकी आय और गिरती जाती है , तथा उनका विकास नहीं होता। 

फिर जब यह बच्चे बड़े होते हैं सब भी अच्छी नौकरियां नहीं मिलने के बाद में गरीब ही रह जाते हैं फिर जो शादी करते हैं और बच्चे पैदा करते हैं और उन्हें भी पैसे के आभाव में अच्छी शिक्षा नहीं दे पाते। इन सब कारणों से भारत का मुस्लिम वर्ग दिन प्रतिदिन पिछड़ता ही जा रहा है। यह एक ऐसा चक्र बनाता है जिससे बाहर निकलना मुसलमानों के लिए बहुत मुश्किल होता है। 


                            ( संपूर्ण रिपोर्ट यहां पढ़ें)

साल 2011 की सेंसस रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर चार में से एक भिखारी मुसलमान है। इसका मतलब भिखारियों में मुस्लिम का योगदान 25% है। बात कड़वी है परंतु सच है , तथा भारत जैसे एक विशाल देश के लिए चिंता जनक भी क्योंकि देश कर 15% से अधिक की आबादी वाली वर्ग का विकास होना सीधे सीधे देश के विकास से जुड़ा है। 

गरीबी तथा साक्षरता में कमी के चलते मुसलमान समुदाय में क्राइम रेट भी बढ़ रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2013 में महाराष्ट्र की जेल में करीब 31% से अधिक मुसलमान थे।

तो अब बात करें इस समस्या का समाधान पाने की तो इसका सीधा सीधा समाधान इस वर्ग के शिक्षित होने से होगा। लेकिन मुस्लिम वर्ग ने बच्चों को स्कूलों से ज्यादा मदरसों में भेजने ज्यादा विश्वास करते है। 

इसी के चलते मदरसों में जाने से बच्चों की 21वीं सदी के अनुसार शिक्षा नहीं मिल पाती है। इसके अलावा यह भी लिखा गया है कि मदरसा जाने से बच्चे ज्यादा कट्टर हो जाते हैं जो आगे चलकर कई तरह के दंगों के रूप में हमें देखने को मिलता है। 

( उत्तर प्रदेश में योगी जी के आने के प्रमुख )

हमें इस सोच को बदलना होगा , क्योंकि भारत की तरक्की में मुसलमान वर्ग का एक बड़ा योगदान हो सकता है। अगर ऐसा नहीं होता और मुस्लिम बच्चे अभी मदरसे में पढ़ते हैं तो उन्हें नौकरी मिलने की संभावना कम हो जाती है और मुसलमान वर्ग का विकास नहीं हो पाएगा। 

आखिर में बात वहीं आकर रूकती है कि अगर भारत को ज्यादा विकास करना है तो इस वर्ग को अपना योगदान भारत के विकास में बढ़ाना होगा और उसके लिए इस वर्ग का शिक्षित होना बहुत ज्यादा जरूरी है , सिर्फ 3% के योगदान से कुछ नही होगा। 

मुसलमान समुदाय को जैन समुदाय से सीखने की आवश्यकता है। भारत में सबसे अल्पसंख्यक जैन है लेकिन कभी भी विक्टिम कार्ड नहीं खेलते, और इसके अलावा अगर देखा जाए तो भारत में सिर्फ 45 लाख की जनसंख्या वाले जैन समुदाय के लोग बहुत विकास कर चुके हैं और आज भारत का सबसे अमीर समुदाय भी है।

इसी के साथ मुसलमानों को अपनी प्रेरणास्त्रोत अब्दुल कलाम जैसी शख्सियतों को बनाने की आवश्यकता है। 

                                   ★  जय हिंद ★

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