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कैसे भारतीय रूपे कार्ड अमेरिकी वीजा और मास्टरकार्ड को खा गया।

 तो आज से कुछ साल पहले हम ऑनलाइन पेमेंट करने के लिए सिर्फ वीजा और मास्टरकार्ड का नाम देखते थे। ऐसा इसलिए क्योंकि हमारी सारी डिजिटल पेमेंट करने के लिए हमे इन विदेशी कंपनियों के कार्ड को इस्तेमाल करना पड़ता था , लेकिन आज बाजी पूरी तरह पलट चुकी है।


 

वर्तमान समय की बात की जाए तो आज भारतीय रूपे कार्ड ने इसे पूरी तरह बदल दिया है। आज भारत में ज्यादातर भुगतान इन्ही का इस्तेमाल कर किया जाता है। लेकिन आज रूपे कार्ड ने इन विदेशी भुगतान कंपनियों का प्रभुत्व पूरी तरह से खत्म कर दिया है।



आपको जानकर हैरानी होगी कि जिस रूपे कार्ड का इस्तेमाल साल 2013 में भारतीय बाजार में सिर्फ 0.6 प्रतिशत किया जाता था उस रूपे कार्ड का इस्तेमाल आज 60 प्रतिशत से भी ज्यादा किया जा रहा है। रूपे कार्ड के इस बढ़ते प्रभुत्व को देखकर वीजा और मास्टरकार्ड इतना घबरा गए कि ये रूप कार्ड की शिकायत करने अमेरिका तक पहुंच गए।


तो आज सवाल ये उठता है कि रूप कार्ड ने कैसे इन बड़ी कंपनियों को धूल चटा दी। इसी के साथ साथ बात करते है कि कैसे भारतीय सरकार ने रूपे कार्ड की इस उपलब्धि में अपनी भूमिका निभाई? 

तो कुछ साल पहले तक इन भुगतान प्रक्रियाओं को करने में दो अमेरिकन कम्पनियां वीजा और मास्टरकार्ड अहम भूमिका निभाते थे और पूरे बाजार में सिर्फ इन दो कंपनियों का प्रभुत्व था। 

तब आरबीआई ने ध्यान देना शुरू किया तो पाया कि भारत में इन कंपनियों का डिजिटल भुगतान में शेयर बढ़ता ही जा रहा है । साथ ही साथ पूरे बाजार में इकलौती कंपनिया होने के कारण ये बैंको से मनचाहा रुपया ट्रांजैक्शन फीस के रूप में वसूल रही है।

साथ ही साथ इन कंपनियों के सर्वर अमेरिका में था तो भारतीय व्यापारी तथा अन्य लोगो का सारा डाटा अमेरिका में स्टोर होता रहा था। तो आरबीआई ने भारतीय बैंको को कहा कि एक बिना ट्रांजैक्शन फीस का कोई ऐसा माध्यम बनाइए जिससे भारतीय लोग अपने ट्रांजैक्शन बिना किसी अनुशुल्क के कर सके। 

पहले इसका नाम इंडिया पे रखा गया था , लेकिन जब इसकी जिम्मेदार एनपीसीआई ( नेशनल पेमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया) को सौंपी गई तो उन्होंने इसका नाम बदलकर रूपे कर दिया । जिसका मतलब था रुपए और पेमेंट। 



इसी तरह कुछ साल मेहनत करने के बाद 26 मार्च 2012 को इसे लॉन्च कर दिया गया। अब इसे बाजार में पेश तो कर दिया गया लेकिन इसका मुकाबला वीजा और मास्टरकार्ड जैसे दिग्गजों से होना था जो पहले से ही भारतीय बाजार में अपना प्रभुत्व स्थापित किए हुए थे। अब बाजार में आने के बाद इसकी इस्तेमाल होने की रफ्तार लगभग ना के बराबर रही। लेकिन फिर कुछ सालों में इसके अप्रत्याशित वृद्धि हुई। और इसी कुछ ही सालों की वृद्धि के दम पर इसने वीजा और मास्टरकार्ड को पीछे छोड़ दिया। 

तो ये हुआ कैसे जानने के लिए हम सबसे पहले समझते है कि ये सब काम कैसे करते है।, ये किन्ही दो बैंक अकाउंट में जिसमे पैसों का ट्रांजैक्शन करना है, उनके बीच एक मध्यम कर्मी का काम करते है। जैसे ही किसी एक बैंक से दूसरे में पैसे भेजने है तो बैंको के बीच वो लेनदेन का काम वीजा और मास्टरकार्ड करते है। इसके बदले वो इन बैंको से कुछ रुपए चार्ज करते है।



तो अब आपको सब समझ आ गया होगा कि यह सब काम कैसे करता है। तो अब बात करते है कि भारत सरकार की इन सबमें क्या भूमिका रही है। तो अगर हम बात करें साल 2011 तक की तो इस समय तक भारत में करीब 50 प्रतिशत लोगो के पास अपना बैंक अकाउंट था ही नही। ऐसा इसलिए क्योंकि पहले बैंक में कम से कम 2000 रूपये से 5000 रूपये तक बैंक अकाउंट को सक्रिय रखने के लिए रखना जरूरी था। और इतना पैसा किसी गरीब के पास होता नही था। 

इसी के चलते सरकार इन्हें किसी भी तरह का फाइनेंशियल सपोर्ट नहीं कर पा रही थी। और इसी के साथ मास्टरकार्ड और वीजा सिर्फ 55 बैंको में ही काम करती थी। इनका मुख्य आकर्षण प्राइवेट बैंको में ही होता था।

इसी के चलते साल 2014 में सरकार प्रधानमंत्री जन धन योजना लेकर आई , जिसके तहत लोग बिना किसी बैलेंस के भी खाता खुलवा सकते थे। तो जैसे ही यह योजना आई , भारत में लाखों–करोड़ों लोगो ने अपने खाते खुलवाने शुरू किए। और भारत सरकार के आदेश पर इन सब खाताधारको को वीजा की जगह रूपे कार्ड दिए जाने लगे।

अब धीरे धीरे लोगो ने जैसे अपने खाते खोलने शुरू किए भारत में रूपे कार्ड को इस्तेमाल करने वाले भी बढ़ते गए। मिनिस्ट्री ऑफ़ फाइनेंस के डाटा की माने तो आज करीब 31 करोड़ 74 लाख रूपे डेबिट कार्ड सरकार जारी कर चुकी है। ये आंकड़ा भारत के कुल डेबिट कार्ड धारकों का 34.5 प्रतिशत हिस्सा है।



इन सब के अलावा जहां मास्टरकार्ड और वीजा कार्ड धारकों से 1 से 3 रुपए एमडीआर चार्ज करते है , वही रूपे कार्ड पर सरकार सिर्फ 90 पैसे चार्ज करती है। जिसमे 60 पैसे देने वाले बैंक और 30 पैसे रकम पहुंचने वाले बैंक से चार्ज किए जाते थे। सरकार ने ऐसा किया ताकि छोटे छोटे व्यापारी भी इस सुविधा का लाभ ले सके।

इन सब के अलावा 1 जनवरी 2020 से सरकार ने ये 90 पैसे का चार्ज भी लेना बंद कर दिया। इसी के साथ सरकार ने 1300 करोड़ रूपये का बजट का भी ऐलान किया है। जिससे बैंको को होने वाले नुकसान की भरपाई की जा सके।



और यही वो असल वजह है जिसके लिए वीजा अमेरिकन सरकार के पास शिकायत लेकर पहुंच गया है। क्योंकि उसे मालूम है कि अगर भारतीय सरकार इसे ऐसे ही प्रमोट करती रही तो वो दिन दूर नही जब इनको भारतीय बाजार में अपना वजूद खोता हुआ दिखाई देगा।



वीजा और मास्टरकार्ड दोनो ही दुनिया के सबसे बड़े बाजार को खोना नही चाहते है। इसलिए ये दोनो कंपनिया आज अपना बाजार बचाने में लगी हुई है। हालांकि ये बात भी सही है कि अभी क्रेडिट कार्ड के मार्केट में रूपे कार्ड का हिस्सा सिर्फ 20 प्रतिशत का ही है। और आज भी इस बाजार में वीजा और मास्टरकार्ड नेतृत्व कर रहे है।

तो इतनी बात करने के बाद सवाल वही आता है कि भारत सरकार आज इस विभाग में इतना खर्च क्यों कर रही है? 

जवाब है कि सरकार आज इसके जरिए देश में हर एक नागरिक तक अपनी पहुंच पहुंचने में लगीं है। इससे सरकार की सारी योजनाओं का सीधा सीधा लाभ हर नागरिक तक पहुंच सके।

दूसरा कारण यह है कि ये सुविधा बिल्कुल स्वदेशी है जिससे जो सुविधा ये स्वदेशी सुविधा किसान और छोटे मजदूर को से सकती है वो कोई विदेशी कंपनी नही दे सकती। जबकि रूपे ने मुद्रा कार्ड , प्रधानमंत्री जन धन कार्ड, पंगरीन कार्ड और किसान कार्ड जैसे कार्ड को शुरू भी कर दिया है।



तीसरा कारण यह है कि जैसे वीजा और मास्टरकार्ड का इस्तेमाल पूरी दुनिया में किया जाता है वैसे ही सरकार भी चाहती है कि रूपे भारत के साथ साथ पूरी दुनिया में अपने पैर जमाए । जिससे भारत को इकॉमिकली विकसित होने में मदद मिले। और आपको ये जानकर खुशी होगी की एनपीसीआई ने इसके लिए साल 2014 से ही काम करना शुरू कर दिया था। आज पूरी दुनिया में करीब 190 देशों में रूपे कार्ड का इस्तेमाल किया जा रहा है। 

उम्मीद है कि आज के ब्लॉग से आपको कुछ नई जानकारी मिली होगी।

(यह भी पढ़े — रूपये की कीमत बढ़ने और घटने के फायदे और नुकसान)

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