साल 1947 में भारत की आजादी के वक्त भारतीय मुद्रा रुपए की डॉलर के मुकाबले एक समान कीमत थी, यानी कि 1 रुपया बराबर था एक डॉलर के। और आज अगर देखा जाए तो वही एक डॉलर पूरे 74 रुपए के बराबर हो पहुंच चुका है। मगर.......
इसके पहले की आप कोई परिणाम पर आए में आपको बता दूं की—
2004 – 1 डॉलर = 43 रुपए
2014 – 1 डॉलर = 62 रुपए
2021 – 1 डॉलर = 74 रुपए
ये देखकर आप अंदाजा लगा सकते है कि किसकी सरकार में रुपए की कीमत में ज्यादा गिरावट देखने को मिली है।
अगर देखा जाए तो आजादी के बाद से लेकर आज तक जितनी भी सरकारें आईं है सभी के कार्यकाल में रुपए को कीमत गिरी है। इसी के साथ ये बात भी बिलकुल सही है कि किसी ने भी रुपए की कीमत सुधारने पर अधिक ध्यान नहीं दिया।
तो आज हम देखते है कि क्यों किसी देश की मुद्रा की कीमत घटती या बढ़ती है?
देखा जाए तो इसके कई कारण है , परंतु कुछ प्रमुख कारण जिनकी वजह से भारत की मुद्रा में अंतर देखने को मिला है वो है—
1. इकोनॉमिक क्राइसेस – साल 1962 तथा 1965 में भारत में ये इकोनॉमिक क्राइसेस देखने को मिले। इनके कारण थे इन दोनो सालों में हुए भारत–चीन तथा भारत–पकिस्तान युद्ध। युद्ध हार किसी देश की अर्थव्यवस्था को कुछ ही समय में हिला कर रख देते है, और जब ये युद्ध हुए तब भारत की अर्थव्यवस्था वैसे भी इतनी मजबूत नही थी जितनी आज है। इनके अलावा और कारण जो थी वो भारत में एक बड़ा अकाल का पड़ना , कर्ज का बढ़ना , तथा आईएमएफ ये कोई राशि का न मिलना।इन सब के बावजूद 2007 में भारतीय मुद्रा की कीमत डॉलर के मुकाबले मजबूत हुई। तब 1 डॉलर की कीमत 39 रुपए हो गई थी। लेकिन फिर ग्लोबल इकोनॉमिक रिसेशन हुआ और जहां दुनिया में सारी बड़ी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित हुई वैसे ही भारतीय रुपए की भी कीमत में गिरावट देखने को मिली।
2013 में तो सिर्फ 15 दिनों में रुपए की कीमत 55 रुपए प्रति डॉलर से गिर कर 57 रुपए प्रति डॉलर तक हो गई थी। इसका मुख्य कारण था कर्ज का बढ़ जाना , कैपिटल आउटफ्लो, इसी के साथ भारत उस समय आयात ज्यादा आयात करने लगा था। इन्ही सब कारणों से रुपए को तब भी भारी गिरावट देखने को मिली।
इसी में रुपए में तेजी आ ही रही थी कि सरकार ने 2016 में नोटेबंदी कर दी। ये निर्णय वैसे तो देश–विदेश में जमे काला धन लाने के लिए लिया गया था , परंतु गलत समय पर लिए जाने के कारण इसने रुपए की कीमत को डॉलर के मुकाबले भरी क्षति पहुंचाई। रुपए की कीमत 67 रुपए प्रति डॉलर से गिरकर 71 रुपए प्रति डॉलर हो गई। फिर ये धीरे धीरे सुधरी और 70 रुपए हो गई , लेकिन फिर वुहान वायरस ने विश्व के साथ साथ भारत की भी अर्थव्यवस्था को पूरी तरह निचोड़ दिया। इसी के साथ रुपए की कीमत गिरकर 74.55 रुपए प्रति डॉलर हो गई।
अगर विशेषज्ञों की माने तो अगर भारत में वुहान वायरस की 3rd वेव आती है , तो इसकी कीमत 77 रुपए से 78 रुपए प्रति डॉलर तक और गिर सकती है।
2. आयात और निर्यात — पूरी दुनिया एक दूसरे से व्यापार करती है। इन सबकी अर्थव्यवस्थाओं को चलाने में व्यापार की अहम भूमिका होती है। इसी के साथ हम सब जानते है कि पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा व्यापार में काम आने वाली मुद्रा डॉलर है , जिसकी दुनिया में 88 प्रतिशत से ज्यादा की हिस्सेदारी है। भारत भी अपने सारे आयात का भुगतान डॉलर में ही करता है , इससे रुपए की कीमत गिरती है। आसन भाषा में अगर भारत निर्यात से अधिक आयात करता है तो उसे ज्यादा डॉलर का इस्तेमाल करना होता है इससे डॉलर मजबूत तथा रुपया कमजोर होता है। तो अगर भारत को रुपए को मजबूत करना है तो उसे निर्यात से ज्यादा आयात करना शुरू करना होगा इससे धीरे धीरे रुपए की कीमत मजबूत हो जाएगी। आत्मनिर्भर भारत इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।अगर बात एक आम नागरिक की की जाए तो हमे अधिक से अधिक भारत में बने प्रोडक्ट खरीदने शुरू करने होंगे।
3. वैश्विक डिमांड और सप्लाई — तीसरा कारण है पूरे विश्व में डॉलर को अधिक मांग। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि डॉलर पूरे विश्व में 88.3 प्रतिशत मांग है और ये इस सूची में बिल्कुल शीर्ष पर कायम है। भारतीय रुपया इसमें 1.7 प्रतिशत की मांग के साथ 16वे पायदान पर है। भारतीय रुपए की कम मांग का एक प्रमुख कारण भारत का अधिक आयात करना है।
पर डॉलर की मांग इतनी अधिक kyu है?
तो इसका जवाब है , ग्लोबल मार्केट में क्रूड ऑयल तथा सोने का भुगतान यूएस डॉलर में ही किया जाता है।
4. क्रूड ऑयल की बाजार में कीमत में अंतर – भारत आज 80 प्रतिशत से ज्यादा ऑयल विदेशों से आयात करता है , इसकी कीमत डॉलर में अदा करनी पड़ती है। ऐसा इसलिए क्योंकि विदेशों में अधिकतर देश डॉलर में ही ऑयल का व्यापार करते है। इससे रुपए पर सबसे ज्यादा असर पड़ता है।
इन सब प्रमुख कारणों के अलावा भी कुछ कारण और है पर ये सभी कारण टेंपरेरी होते है —
1. उच्च मुद्रास्फीति ( हाई इनफ्लेशन)
2. कैपिटल आउटफ्लो
3. ट्रेड वॉर
रुपए की कीमत गिरने से होने वाले नुकसान—
ये तो वो कारण हुए जिसकी वजह रुपए की कीमत गिरती है लेकिन इन सबसे भारतीय लोगो को क्या मुसीबत या परेशानी होती है? निम्न परेशानियां जो इसको वजह से होती है—
1. पेट्रोल तथा डीजल की कीमत का बढ़ना– इसका सीधा असर आम आदमी पर पड़ता है। जैसे ही ईंधन की कीमत में इजाफा होता है , तो आम लोगो के काम में आने वाले सामानों पर भी कंपनियां अपना ट्रांसपोर्ट शुल्क बढ़ते हुए , दाम बढ़ा देती है।
अगर रुपया डॉलर के मुकाबले अधिक गिर जाता है तो आरबीआई ब्याज दरों में वृद्धि कर देती है। इससे लोगो के लोन या होम लोन की किश्तें बढ़ती है , और आम आदमी को अधिक नुकसान सहना पड़ता है।
2. विदेशों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों पर पड़ने वाला बोझ– जैसे ही रुपए की कीमत डॉलर के मुकाबले गिरती है तो विदेशों में पड़ने वाले विद्यार्थियों को अधिक रुपए खर्च करने पड़ते है।
3. भारतीय पर्यटकों पर पड़ने वाला बोझ – जो नुकसान बाहर पड़ने वाले विद्यार्थियों को झेलना पड़ता है वही नुकसान बाहर घूमने जाने वाले भारतीयों को भी झेलना पड़ता है।
रुपए की गिरावट से होने वाले फ़ायदे —
1. निर्यात में मिलने वाले फायदे – भारतीय रुपए के गिरने से सबसे ज्यादा फायदे में निर्यातक रहते है। कैसे? तो वो इसलिए क्योंकि अब उन्हें डॉलर की ज्यादा कीमत मिलती है, और इससे निर्यातक फायदे में रहते है। और जब निर्यातकों को फायदा अधिक होता है तो भारत का निर्यात भी बढ़ने लगता है। निर्यात बढ़ने का एक मुख्य कारण भारतीय चीजों की कम कीमत का होना भी होता है।
2. कई देश जानबूझकर इसी कारण अपनी मुद्राओं की कीमत गिरा देते है। इससे उन सभी देशों का निर्यात अन्य देशों में बढ़ जाता है। इससे उनकी मैनिफैक्चरिंग सेक्टर में बढ़ोतरी होती है।
अमेरिका जिसका डॉलर आज दुनिया में राज करता है , वही अमेरिका चीन पर अपनी मुद्रा की कीमत में छेड़छाड़ के आरोप लगता रहा है। यही वो कारण है जिस वजह से कई एशियाई देश जिसमे भारत भी शामिल है वो अपनी मुद्रा को इंटरनेशनल वैल्यू को गिरने देते है।
3. इससे एक फायदा घरेलू टूरिज्म सेक्टर को भी होता है। डॉलर की कीमत यह अधिक होने से विदेशी यह घूमने फिरने आते है जो इस सेक्टर को भी बूस्ट देता है।
4. रुपए की कीमत कम होने से भारत का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर भी बढ़ता है। क्योंकि उन्हें मैन्युफैक्चर्ड आइटम विदेशों में निर्यात करने पर अधिक पैसे मिलते है।
5. जब भारत का निर्यात , आयात के मुकाबले बढ़ जाता है तो भारत का ट्रेड डिफिसिएट भी कम हो जाता है। को भारतीय दृष्टिकोण से भारत के लिए काफी फायदेमंद है।
कैसे रुपए की कीमत को इंटरनेशनल लेवल पर मजबूत किया जा सकता है......????
इसका सीधा सीधा जवाब है– भारत को अपने रुपए को कीमत बढ़ाने के लिए सबसे पहले अपने निर्यात को आयात के मुकाबले बढ़ाना होगा। और इसी के साथ भारत को अपने क्रूड ऑयल का आयात जो हम 80 प्रतिशत से ज्यादा विदेशों से आयात करते है उसे काम करना होगा। ऐसा करने के लिए हमे ज्यादा से ज्यादा गाड़ियों को इलेक्ट्रिक वाहनों में बदलना होगा।
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★ जय हिंद★
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