अभी हाल ही में देश में एक मुद्दा अत्यंत गरमाया हुआ है। ये मुद्दा है एक बीजेपी प्रवक्ता नुपुर शर्मा के द्वारा पैगंबर मुहम्मद के बारे में दिया गया एक बयान जिसमे उनके द्वारा उनका संबंध एक छोटी बच्ची से बताया गया। नुपुर शर्मा के द्वारा ऐसा उन्होंने मुस्लिम प्रवक्ता द्वारा शिव जी के अपमान के बाद दी गई प्रतिक्रिया बताया।
उन्होंने कहा – कि मैं अपने आराध्य शिव जी के अपमान को से नही पाई और मैने ऐसा बयान दिया। अगर मेरे इस बयान से किसी को कोई ठेस पहुंची है तो मैं माफ़ी चाहती हूं।
बीजेपी ने इसके बाद नुपुर शर्मा तथा एक अन्य प्रवक्त नवीन जिंदल को पार्टी ने बर्खास्त कर दिया । अब मुद्दा यहां पर खत्म होना चाहिए था परंतु हुआ कुछ उल्टा। कतर जो एक मुस्लिम देश है , उसने इस मुद्दे को पैगंबर के सम्मान में हुई गुस्ताखी करार दिया। पर यहां सवाल आता है कि क्या एक ऐसा देश जो कही से लेकर कही तक भी एक लोकतंत्र नही है , वो भारत जैसे लोकतांत्रिक व धर्मनिरपेक्ष देश को इस मुद्दे पर सलाह देने लायक है??
क्योंकि धर्मनिरपेक्षता ने कतर भी दूध का धुला नही है। भारत में जब एक एम. एफ. हुसैन नामक चित्रकार हिंदू देवी देवताओं के अभद्र चित्र बनाता है तो यही कतर उसे नागरिकता देकर अपने दोहरे मापदंडों का सबूत भी देता है। और दिलचस्प बात यह है कि भारत में हुए हिंसक विरोध प्रदर्शन कतर की टिप्पणी के बाद से शुरू हुए।
फिर जब कतर के बाद ईरान और मलेशिया ने भी विरोध दर्ज करवाया तो भारत पर दबाव बढ़ाने के लिए ओआईसी (आर्गेनाइजेशन ऑफ़ इस्लामिक कोऑपरेशन) के तरफ से भी बयान आ गया ।
अपने बयान में ओआईसी ने इस मुद्दे पर यूएन को हस्तक्षेप करने की बात तक कह दी। इतनी प्रतिक्रिया मिलने के बाद भारत की तरफ से कड़ी प्रतिक्रिया आई । और भारत ने ओआईसी को छोटी सोच वाला तक करार दिया ।
पर आखिर बात वही आकर अटक जाती है, कि क्या कतर जो एम. एफ. हुसैन जैसे लोगो को शरण देने पर भी भारत को सुना सकता है? मुझे नही लगता कि इतना दोगलापन कोई और देश इख्तियार कर सकता है। बात अगर की जाए मलेशिया की तो मलेशिया ने भी ज़ाकिर नाइक जैसे कट्टर मुस्लिम स्कॉलर जो भी हिंदुओ को हमेशा अपमानित करते है उन्हे नागरिकता दी।
भारत जो हमेशा कहीं न कहीं हमेशा ऐसे मुद्दों पर नरम रुख रखता है उसे इस बार सख्ती दिखानी होगी। हमारे प्रधानमंत्री इस बात को कई बार कह चुके हैं कि भारत 130 करोड़ से अधिक आबादी वाला एक लोकतांत्रिक देश है। हम पर कोई दबाव नहीं बना सकता बल्कि भारत दुनिया पर दबाव बना सकता है। इसे भारत को भी दिखाना होगा।
पैगंबर पर की गई टिप्पणी गलत थी लेकिन हिंदू देवी देवताओं का मजाक उड़ाना भी कही से लेकर कही तक सही नही है। उसके बाद अल जजीरा जैसे अखबार भारत को ज्ञान देता है। ये कही भी सही नही हैं। भारत के सख्त कदम ही इन सब पर लगाम लगा सकते है।
भारत में हिंसा होना कोई छोटी बात नही है , और इसीलिए ऐसी हिंसा जो बढ़ावा देने वाले अखबार भी सही नही हो सकते। भारत आज उभरती हुई अर्थव्यवस्ताओ में एक है। भारत के फैसलों को दुनिया देखती भी है और समझती भी है । भारत का ऐसे मुद्दों पर चुप्पी साधना गलत संदेश देता है।
अब बात करें भारत के अंदर कुछ लोगो के दोगले पन की तो कुछ नामी पत्रकार और जय नामी हस्तियां भा इसमें शामिल है। कुछ लोग जो ज्ञानवापी में शिवलिंग के मुद्दों पर जहां हिंदू देवताओं का मजाक बना रहे थे वो जैसे ही मुस्लिम पक्ष के पैगंबर के बारे में टिप्पणी सुनते है तो भड़क जाते है।
भड़कने के बाद भड़काऊ ट्वीट करते है और देश में हो रही हिंसा को बढ़ावा देते है। इन्ही नामजद लोगो ने नाम आता है अरफा खानम, राणा अय्यूब और शादाब खान जैसे लोगो शामिल है।
ऐसा नहीं है कि भारत में इस मुद्दे पर कही साथ नही मिला गीर्ट विल्डर्स नामक एक डच पॉलिटीशियन ने इस मुद्दे पर इस्लामिक देशों को खरी खोटी सुनाई है। इसके साथ इस्लामिक देशों के धार्मिक आजादी पर दोहरे माप दंडो को लेकर भी कटाक्ष किया है।
( सोर्स :– ट्विटर )
वहीं कतर जहां से इस मुद्दे पर कड़ी प्रतिक्रिया आई थी , वहां जब कुछ मुसलमान जो भारत से गए हुए थे , उनके द्वारा जब कतर में इसे लेकर प्रदर्शन करने की कोशिश की तो कतर तो साफ तौर पर उन्हें सीधे सीधे भारत का रास्ता दिखा दिया। क्योंकि जाहिर सी बात है कोई देश ऐसे हिंसक प्रदर्शन नही चाहता।
आखिर में बात वही आ जाती है , कि क्या सेकुलरिज्म का ठेका सिर्फ भारत ने ले रखा है। भारत दुनिया में इकलौता ऐसा देश है जहां इतने सारे धर्म से जुड़े लोग साथ मिलकर रहते है। और उसे ज्ञान देने ऐसे देश सामने आते है जो खुद अपने देश में इन सब चीजों की इजाजत नही देते।
अभी हाल ही में एक फैक्ट चैकर , मोहम्मद जुबेर जो एक प्रतिष्ठित पत्रकार है , और जो इन सारी चीज़े में हिंदू मुस्लिम का मुद्दा ढूंढ कर पेश करते है उन्ही के द्वारा एक पोस्ट किया गया।
अब इसे पढ़कर आपको क्या लगता है? क्या सारे सेकुलरिज्म का मतलब सिर्फ यही है कि हिंदुओ के देवी देवताओं का अपमान करिए और मुस्लिम पैगंबर को कुछ न कहिए?? ये तो सरासर गलत है ! लेकिन शायद भारत में अब सेकुलरिज्म का यही मतलब रह गया है।
शायद इस विवाद का इतना बड़ा होने का एक प्रमुख कारण यह धारणा भी हो सकती है कि एक बहुसंख्यक समाज एक अल्पसंख्यक समाज से ग्रसित नही हो सकता। बल्कि इसके उलट एक अल्पसंख्यक समाज एक बहुसंख्यक समझ से ग्रसित हो सकता है। वर्तमान समय में शायद दुनिया इसी विचार के चलते यह समझती है कि इस विवाद में दोष भारत की बहुसंख्यक समाज का है।
शायद इसी वजह से यही अल्पसंख्यक समझ से कई हस्तियां आए दिन हिंदू समाज के देवी देवताओं और पूजा प्रस्ठानो का मजाक आसानी से उड़ा लेते है पर बात जब खुद के समाज पर आए तब.....!!!!!!
( यूपी चुनाव में योगी जी के फिर से आने के प्रमुख कारण )
आपके इस बारे ने क्या विचार है? कमेंट मे अवश्य बताएं ।
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