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न्यू यॉर्क टाइम्स– एक और मोदी विरोधी लेख?

1 जुलाई को ‘ द न्यू यॉर्क टाइम्स’ ने अपनी वेबसाइट तथा लिंक्डइन पर
एक प्रवेश स्तर की नौकरी की आवश्यकता पोस्ट की। यह एक बहुत बहुत ही स्वाभाविक सी बात लगती है, है ना? जी नहीं क्योंकि ये उतना स्वाभाविक तरीके से पोस्ट नही किया गया। अमेरिका तथा दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित अखबार के लिए एक जर्नलिस्ट की आवश्यकता थी, और उन्हें इसके लिए उस संपादक में जिस खूबियों की आवश्यकता थी ये बड़ी अचरज वाली बात थी। 



दरअसल हुआ यूं कि न्यू यॉर्क टाइम्स के द्वारा दिए गए भर्ती प्रक्रिया के अनुसार जो भी आवेदन करना चाहता है, वो सबसे पहले हिंदू समुदाय विरोधी और इसी के साथ साथ मोदी विरोधी भी होना चाहिए। आश्चर्य तो नही हुआ ? जी हां यही काबिलियत को तलाशते हुए द न्यू यॉर्क टाइम्स ने यह इश्तेहर छापा जो इस प्रकार है—



प्रस्तुत लेख के अनुसार न्यू यॉर्क टाइम्स ये चाहता है कि उम्मीदवार विशेष प्रकार से भारत में पूर्ण लोकमत से चुनी सरकार के खिलाफ लिख सके। 
सच में ? क्या यह स्तर है इस दुनिया के सबसे बड़े संपादकीय अखबारों का? 







अगर इसे पूरे तरह से चीन के चश्में से देखा जाए तो न्यू यॉर्क टाइम्स हर वो बात जो भारत चीन के बीच में भारत के खिलाफ हो उसका समर्थन करता है । 2020 में सीमा विवाद के बाद से आत्मनिर्भर भारत जो मोदीजी ने शुरू किया उसके तहत चीनी सामानों पर से निर्भरता कम करते हुए भारत ने चीन के साथ करीब 5.64 प्रतिशत कम व्यापार किया। तो यहां पर अगर कोइ भी आत्मनिर्भर भारत से प्रभावित हुआ वो चीन के साथ साथ द न्यू यॉर्क टाइम्स भी है।




ये विचार है न्यूजीलैंड के फॉर्मर क्रिकेटर के । ये जनाब भारतीयों के बारे में ऐसे mentality रखते है। जैसा मैने कहा , यही होगा अगर आप लगातार किसी एक समुदाय के बारे में ऐसे विचारो का समर्थन करेंगे । बात कड़वी लग सकती है , पर ये एक गंभीर विषय है। 

विषय कितना गंभीर है इसका अंदाजा शायद आप लोग इसी बात से लगा सकते है कि एक ऐसा व्यक्ति जो भारत से कोसो दूर एक अन्य देश में रहता है। और स्वाभाविक तौर पर निश्चय ही यह व्यक्ति क्रिश्चियन धर्म को मानने वाला जान पड़ता है। तो इस इंसान के मस्तिष्क में यह हिंदुत्व नामक शब्द आया कैसे? इसका जवाब है यही सब अंतराष्ट्रीय संपादक जो कही ना कही इस शब्द को भारत के हिंदू समुदाय से जोड़ते है और फिर उसे हिंदुत्व का नाम देकर इन्हे इस तरह से प्रस्तुत करते है जैसे यूएन में अंतराष्ट्रीय आतंकवादियों की लिस्ट में हिंदुत्व नामक संगठन है जो विश्व भर में अशांति फैलाते है। 




हाल ही में वॉशिंगटन पोस्ट में छपे एक लेख के अनुसार उत्तर प्रदेश में लोकतांत्रिक तरह से चुने हुए मुख्यमंत्री को यह अखबार एक कट्टर हिंदूवादी सोच के उग्रवादी साधु बता रहा है तो वही अबु बकर अल– बगदादी जैसे आईएसआईएस के घोषित तालिबानी आतंकवादी को एक धार्मिक विद्वान बता रहा है। अब बताने की जरूरत तो नही होगी लेकिन फिर भी अवगत करा देते है इन दोनो लेखों को लिखने वाली मोहतरमा कोई और नहीं बल्कि राणा अयूब नामक एक पत्रकार है जो वर्तमान समय की मोदी सरकार तथा हिंदू समुदाय के विरोध में कही ना कही कुछ ना कुछ लिखकर अपनी भड़ास निकलती रहती है। 

खैर भारत एक लोकतांत्रिक देश है तो इनका पूरा हक बनता है अपनी राय रखने का। लेकिन मुझे यह बात समझ नही आती कि जब यह पत्रकार पूरी तरह से एक सरकार और समुदाय के खिलाफ लिखती ही रहती है फिर किस प्रकार ये बिना पक्षपात के कॉलम लिखेगी ऐसा आपको लगता है जो आपने इन्हें वॉशिंगटन पोस्ट नामक एक प्रख्यात अखबार में भारतीय मुद्दों पर लिखने की स्वतंत्रता दी है ? 

इसी कड़ी में अभी हाल ही में भारत के विदेश मंत्री डॉक्टर एस जयशंकर ने इस मुद्दे पर बात करते हुए अपनी कांफ्रेंस के दौरान कहा था कि कुछ अंतराष्ट्रीय अखबारों तथा मुखपत्रो के बारे में आप पहले से यह भविष्यवाणी कर सकते है कि भारत में हुए किसी भी कार्य के बारे में ये कल अपने अखबारों में क्या लिखने वाले है! इनका इशारा न्यू यॉर्क टाइम्स की तरफ था। और अब यह बात भारत में भी लोगो के दिमाग में कुछ हद तक बैठ चुकी है कि न्यू यॉर्क टाइम्स और वॉशिंग्टन पोस्ट में अगर भारत के बारे में या इसकी सरकार के बारे में एक नकारात्मक बात लिखी है तब तो यकीनन भारत में कुछ अच्छा ही रहा है। 
यह भावना लोगो के मन में बढ़ना एक अच्छा संकेत नहीं। खासकर अगर ऐसी धारणा किसी अखबार या मुखपत्र की बने। पर यह मीडिया के चैनल इस बात को समझने में शायद जरा भी दिलचस्पी नहीं ले रहे । जो सही बात नही है और इनका भारत के बारे में हमेशा विरोध में लिखना जारी है।

जनता हूं कि इस बारे में एक और ब्लॉग लिख चुका हूं , पर जब ऐसे वाकए सामने आते है , तो गुस्से से ज्यादा निराश होती है । एक ऐसा अखबार जो विश्वप्रख्यात है उसे भारत से इतनी नफरत ? 
अगर आप द न्यू यॉर्क टाइम्स में छपी खबरों को पढ़ते है तो आपको पता होगा कि हिंदी विरोधी बाते न्यू यॉर्क टाइम्स में बहुत आम बात हो गई है। न्यू यॉर्क टाइम्स द्वारा महिलाओं के पहनावे में शामिल साड़ी को हिंदू राष्ट्रवादी अभियान का उपकरण कहने का मामला हो या ये दावा करना कि किसी भी गैर मुस्लिम पर ही धर्मांतरण की जिम्मेदारी है , मुझे नहीं पता की हमेशा ऐसा क्यों? 
अगर यही पैटर्न रहा तो क्या कभी ऐसा नहीं हो सकता कि जो लोग दुनिया भर में रहते है वो भारत के हिंदू समुदाय को हर बात का जिम्मेदार ठहराने लगे? यह कही से भी भारत के बहुसंख्यक हिन्दू समुदाय के लिए सही नही होगा। इस समुदाय को आबादी करीब करीब 80 से 100 करोड़ के बीच होगी जो इस दुनिया में कई देशों की जनसंख्या मिलाकर भी नही है , ऐसे में इस प्रकार हिंदू समुदाय को हिंदुत्व आदि उपाधियां देकर अनदेखा करना क्या वाकई में एक समझदारी भरा कदम होगा ? दुनिया पहले ही आतंकवाद से ग्रसित है तथा इसी की लड़ाई के लिए अग्रसर हो रही है , वहां पर ये अखबार, तथा इनके ऐसे लेख? क्या मीडिया की आजादी का यही मतलब होता है?
मुझे ऐसा लगता है कि जितनी मेहनत द न्यू यॉर्क टाइम्स हिंदू विरोधी बातें करने में लगाता है उसकी आधी भी अगर आतंकवाद विरोधी सुर लगाने में लगाएं तो ये दुनिया एक बेहतर दुनिया हो सकती है।

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