लेकिन जब आप मैगजीन को देखेंगे तो आपको एक बात साफ साफ दिखती है, ये मैगजीन किसी भी व्यक्ति पर एक आर्टिकल के साथ अपने विचारो को रखती है। लेकिन ये कोई महत्वपूर्ण बात नही । सबसे महत्वपूर्ण बात तो ये है कि इन आर्टिकल को लिखता कौन है? जो इन्हें लिखता है ,उनकी क्रेडिबिलिटी कितनी है? समझ नही आया? चलिए समझते है—
इस बार के प्रकाशन में कुछ प्रमुख नामों के बारे में जानते है।
पहला नाम है , डॉक्टर ट्रेडॉस – ये बड़ा कॉन्ट्रोवर्शियल नाम है , जो इस लिस्ट में आया है। ये WHO के डायरेक्टर जनरल है। और इनके बारे में लिखने वाली गावी नाम की एक कंपनी है जो की who की ही क्लाइंट है। जाहिर है कि वो कभी इनके बारे में कुछ गलत तो लिखेंगे नही। भले ही ये बातें जग जाहिर हो कि ये वही है जिन्होंने कोरोना के बारे में ये कहा था कि ये एक मनुष्य से दूसरे में नही फैलता , जो चीन की मदद से यहां तक पहुंचे है । फिर भी टाइम मैगजीन के आर्टिकल इनके बारे में कुछ और ही कहती है।
बाकी के लोग , जैसे – नैंसी पलोसी जिनके बारे में हकीम जेफ्रिस ने लिखा है , जो बाइडेन जिनके बारे में जिम क्लीबर्न ने लिखा है , कमला हैरिस जिनके बारे में लिखा है अयाना प्रेसली ने । ये सभी डेमोक्रेटिक पार्टी के मेंबर है जिनके बारे में लिखा गया ओर जिन्होंने लिखा गया। इन सब ने यहां इन लोगो के बारे में बहुत पॉजिटिव लिखा है।
लेकिन यहां कुछ लोगो के लिए नेगेटिव भी लिखा गया है , और वो लोग कौन है? वो लोग है– डोनाल्ड ट्रंप , नरेंद्र मोदी , विलियम बार , जैर बोलसोनरो । इन सबके बारे में जिन्होंने लिखा है वो कोई पॉलिटिकल पार्टी से नही बल्कि टाइम मैगजीन के ही जर्नलिस्ट है।
थोड़ा आसान भाषा में समझें तो जिनके बारे में सबकुछ अच्छा लिखा हुआ है वो है लेफ्ट विंगर पार्टी के लोग । और जिनके बारे में सब बुरा लिखा हुआ है वो सब है राइट विंगर पार्टी के लोग। तो यहां साफ तौर पर दिखाई देता है , कि ये मैगजीन एक तरफ biased है।
तो हम यहां पर नरेंद्र मोदी के आर्टिकल को देखते है—
इनके बारे में कार्ल विक नामक शख्स ने लिखा है । ये टाइम मैगजीन में एडिटर इन लार्ज है। तो ये लिखते है कि भारत में फ्री इलेक्शन करवाने का मतलब ये नही कि यहां डेमोक्रेसी है , बल्कि ये है कि किसे यहां पर ज्यादा वोट मिले। आगे लिखते हुए ये कहते है कि भारत में 130 करोड़ लोग रहते है , और जब मोदी ने चुनाव जीता तो उन्हें जिन्होंने वोट दिया वो तो ठीक है , लेकिन उनका क्या जिन्होंने उन्हें वोट नही दिया? मतलब दुनिया में चुनाव जैसे होते है वो चाहते है को भारत में वैसे ना हो??
महानुभाव आगे लिखते है कि मोदी से पहले भी कई हिंदू पीएम बने पर उन्होंने ऐसे राज नही किया जैसे मोदी करते है। मोदी ऐसे राज करते है जैसे हिंदू के अलावा यहां और कोई रहता ही ना हो। क्या ये सच्चाई है??
क्योंकि द प्रिंट का ये आर्टिकल बताता है कि मोदी सरकार ना यूपीए सरकार से ज्यादा मुस्लिम को सब्सिडी दी है।
इसके अलावा मोदी सरकार ने एक नई स्कीम भी लागू की थी जो की 5 करोड़ मुस्लिम बच्चों के लिए अगले पांच सालों में लागू होगी।
ऐसे ही 2018 में जब मोदी ने मुस्लिमो को हज पर जाने के लिए जो सब्सिडी मिलती थी वो रोक दी थी। दरअसल ये सब्सिडी एयर इंडिया को जाती थी जिसे मोदी सरकार ने रोक दिया था । ये खबर मिलने के अगले ही महीने में मोदी सरकार ने हज को जाने वाली फ्लाइट्स का किराया कम कर दिया था। इसके अलावा 2019 में सऊदी अरब के प्रिंस से मुलाकात के बाद मुस्लिमो का कोटा जो की सिर्फ 25000 था वो भी बढ़कर 2 लाख हो गया। तो क्या इतना कुछ करने के बाद ये तो नही लगता कि मोदी सरकार ऐसे राज करती है जैसे कोई और धर्म है ही नही भारत में।
फिर टाइम मैगजीन में ऐसा क्या था जिसे कोट किया गया ताकि मोदी की छवि बिगड़ी जा सके ? वो ये तीन आर्टिकल थे जो कि लिखे थे आतिश नासिर , राणा अय्यूब , अभिषयंक किडंगुर ।
अभिशयंक द्वारा लिखे गए आर्टिकल में कहा गया कि मोदी सरकार ने लॉकडाउन जल्दबाजी में लगाया और किसी को कही निकलने का मौका नहीं दिया गया। बात थोड़ी तो सही भी है , कि lockdown प्लानिंग करके नही लगाया गया , तथा लोगो को वही रोक दिया गया जहां वो थे , पर लॉक डाउन का मकसद तो यही था ,जो जहां है वहीं रुक जाए।
बात करे राणा अय्यूब के आर्टिकल की , तो शायद ही कोई भारत वासी ऐसा होगा जिन्हें राणा अय्यूब का मोदी के खिलाफ घृणात्मक आर्टिकलो के बारे में पता ना हो। गुजरात दंगो पर जब राणा अय्यूब ने किताब लिख डाली थी जिसमे मोदी को भर भर के दोष दिया गया उसे सुप्रीम कोर्ट ने ये कहते हुए खारिज कर दिया कि ये सब मन में उपजे ख्याली पुलावो ये ज्यादा कुछ नहीं।
टाइम मैगजीन ऐसे लोगो को मोदी पर आर्टिकल लिखने के लिए चुनता है , और वो वही छापते है जो टाइम चाहता है।
क्या इतना कुछ होने के बाद भी टाइम की क्रेडिबिलिटी बनी रह सकती है? सवाल तो खड़ा होता है, लेकिन ऐसे सवाल कौन पूछेगा ?
आजकल ये एक ट्रेंड की तरह हो गया है। अगर कोई भी दुनिया में ऐसा शख्स है जिसे कुछ समय से कैमरों का फोकस नही मिल रहा है वो कुछ ना कुछ भारत या फिर भारत के लोगो के बारे में लिखना शुरू कर देता हैं और फिर चाहे दुनिया में कोई उसे पढ़े या नही पर भारत में भर भर के लाइमलाइट मिल जाती है।
मोदी के अलावा एक बिल्किश नामक वृद्धा का भी इस मैगजीन में जिक्र है , जिन्होंने मोदी सरकार के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था। और गौर फरमाइएगा ये भी उसी इंटरव्यू से इंस्पायर था जो राणा अय्यूब ने लिया था। तो कुल मिलाकर ये पूरी तरह से बायस्ड प्लेटफार्म है। जिसकी कोई क्रेडिबिलिटी नही होनी चाहिए।
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