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सेंट्रल विस्ता प्रोजेक्ट - अच्छा या बुरा ?

 सेंट्रल विस्ता पुनर्निर्माण प्रोजेक्ट पिछले कुछ महीनों में कॉन्ट्रोवर्सी का स्त्रोत बना हुआ है। कुछ लोग कहते है इस प्रोजेक्ट से आपके चुस्की खाने के अधिकार को छीना जा रहा है , तो कुछ लोग कहते है की ये एक हिंदू तालिबान का प्रोजेक्ट है । क्या ये सब सच है? हमे नए संसद भवन की अचानक क्यों जरूरत पड़ गई? 


खैर सबसे पहली बात की ये प्रोजेक्ट अभी की सरकार का लाया हुआ जरूर है परंतु इसका विचार पुरानी सरकार (कांग्रेस) को ही आया था। गौरतलब है की इसके बावजूद कांग्रेस इसका बहुत अधिक विरोध कर रही है। तो सबसे पहले बात करते है की नए संसद भवन की क्यू जरूरत है ?

1. साल 2026 में भारत में MPs बढ़ जाएंगे क्योंकि हमारी जनसंख्या बढ़ने वाली है तो जाहिर सी बात है MPs भी बढ़ेंगे । 

2. हमारे अभी के संसद भवन की इमारत पुरानी हो चुकी है । संसद पुरानी मतलब पुरानी टेक्नोलॉजी जैसे वोटिंग करने की , एक दूसरे से वाद विवाद  करने की टेक्नोलॉजी आदि। 

3. चूंकि संसद भवन पुराना हो गया है तो इसकी मेंटेनेंस में भी काफी खर्चा आता है। 1000 करोड़ रुपए तो सिर्फ इसके किराए पर हो खर्च हो जाते है। 

4. ये भवन earthquake यानी भूकंप रहित है या नही इसके भी प्रमाण नहीं है , क्योंकि इसका ब्लूप्रिंट अभी तक नही है।

5. मंत्रियों के दफ्तर एक दूसरे से काफी दूरी पर है जिससे आने जाने में काफी वक्त जाता है , तथा इनके आने जाने के लिए पुलिस प्रशासन द्वारा बनाए गए ग्रीन कॉरिडोर से भी जनता को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। 



नए संसद भवन का विचार क्यों ? 

तो नए संसद भवन का विचार अभी का नही है , ये 7 साल पुराना विचार है जो की ये सरकार पूरा करने में लगी है।

कांग्रेस के समय 2012 के कैबिनेट मिनिस्टर जयराम रमेश जो की यूनियन मिनिस्टर of rural development भी थे उन्होंने सरकार को सुझाव दिया था की हमारी संसद भवन की इमारत अब पुरानी हो चुकी है तथा इसे अपग्रेड करने की जरूरत है।

साल 2018 में फिर से कांग्रेस के दिग्गज नेता शशि थरूर जो की मलेशिया के संसद भवन होकर भारत आए , तो उन्होंने भी ट्वीट किया की वहां की संसद भवन काफी आत्धुनिक है , ओर हमे भी ऐसे भवन की आवश्यकता है , हालांकि ये बात अलग है की अब कांग्रेस को इसमें ही राजनीति करने की सूझ रही है। 


अब बात करते है उस सवाल की, कि क्यों सरकार को इस कोरॉना काल में नए भवन पर क्यू पैसा खर्च कर रही है ?

तो संसद भवन पर पूरे 20000 करोड़ 3 साल में खर्च होने है मतलब एक साल में लगभग 7000 करोड़ । लोग कहते है इन पैसों को बीमारी के लिए क्यों खर्च नही कर रही ? तो यहां भी थोड़ा डाटा पर नजर डालते है , इस बार सरकार ने 35000 करोड़ का बजट वैक्सीन के लिए निकाल है , तथा पूरे हेल्थ बजट की बात की जाए तो वो करीब 2. 2 लाख करोड़ रुपए सरकार इस बजट में सिर्फ हेल्थ सेक्टर में खर्च करेंगी । तो ये 7000 करोड़ का इतना बड़ा मुद्दा बनना वाकई आश्चर्यजनक है। 

एक पक्ष ये भी कहता है की इकोनॉमी ( अर्थव्यवस्था) पहले से ही काफी कम हो चुकी है फिर इंफ्रास्ट्रक्चर पर और खर्च क्यों करना?

अगर आप भी ऐसा सोचते है तो आपको अपने विचार के विस्तार की आवश्यकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि कई बड़े अर्थशास्त्रियों का भी मानना है , कि अगर अर्थव्यवस्था नीचे जा रही है तो इंफ्रास्ट्रक्चर पर ज्यादा खर्च करना चाहिए। क्योंकि जब किसी भी चीज का निर्माण होता है तो उस समय कई नौकरियां , सामान , पैसा मार्केट में लगता है जिससे इकोनॉमी को बढ़ने में काफी मदद मिलती है। 

आज के समय में जब भारत में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या बनकर उभरी है वहां पर इस प्रकार के प्रोजेक्ट्स से कईयों को रोजगार मिलेगा जिससे पूरी तरह से ना सही पर एक हद तक बेरोजगारी की समस्या को कम किए जा सकता है। 

और यह शायद भारत का दुर्भाग्य है कि आम लोगो को ऐसी बात समझाने की बजाय लोग अपनी राजनीति चमकाने में ज्यादा लगे रहते है। आज भारत में लोगो के बीच ऐसी धारणा है कि सरकार अगर रोड बनाती है तो इसमें उनका कोई फायदा नही है। जबकि सच्चाई इसके बिल्कुल उलट है। इसीलिए हमें जितना हो सके लोगो को जागरूक करना चाहिए कि इंफ्रास्ट्रक्चर आज देश के लिए कितना जरूरी है। 

लोगो का जानना इसीलिए भी जरूरी है ताकि सरकार को चुनते वक्त वे लोग यह बातें भी संज्ञान में ले कि जो पार्टी चुनाव लड़ रही है उसकी चुनावी वादों में देश के इंफ्रास्ट्रक्चर के बारे में क्या क्या वादे है।


कांग्रेस vs बीजेपी के इंफ्रास्ट्रक्चर पर ज्यादा जानकारी के लिए यह क्लिक करे।

मगर ये कहना की पॉलिटिक्स नही है, ये बेईमानी होगी क्योंकि ये प्रोजेक्ट उन जगहों पर ज्यादा हो रहे है जहा चुनाव है या आने वाले है। जैसे - असम , केरेला , तमिल नाडु , बंगाल आदि। यह पर करीब 2 लाख करोड़ तक के इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर काम चल रहा है। 

क्या प्रोजेक्ट ने एक खूबसूरत से इलाके को बदसूरत में बदल दिया है?


यह इस पूरे विवाद का सबसे बेतुका तर्क है क्योंकि हम सब जानते है , जब कोई इमारत निर्माणाधीन होती है तो शुरू में वो जगह बदसूरत ही दिखती है परंतु इमारत के बनने के बाद सबकुछ अच्छा दिखने लगता है। ये बिल्कल आम बात है।

पर कुछ कहे या नही इस प्रोजेक्ट ने काफी कॉन्ट्रोवर्सी पैदा कर दी है । और ये सब हुआ है तथ्यों को जांचे परखे बिना कुछ भी बोलने की वजह से । इसमें कही ना कही विपक्षी दलों की भी अहम भूमिका रही है। भले ही प्रोजेक्ट का विचार उनके शासन काल में आया हो, परंतु विरोध करना कुछ समझ से परे है। 

खासकर आज के समय में जब भारत का बजट लगभग 550 बिलियन डॉलर का हो गया है। इसी के साथ अगर बात करें दिल्ली के ट्रैफिक की समस्या की तो आज के समय काफी आम बात हो गई है। दिल्ली में ट्रैफिक का एक बड़ा कारण यह भी रहा है कि सारे वीआईपी लोगो के काफिले को निकलने में लोगो के रूट को बदलना पड़ता है इससे आम लोगो को भी परेशानी होती है। 

नया पार्लियामेंट हाउस बनने की वजह से एक अलग रूट तैयार हो जाएगा जिससे सारे वीआईपी काफिले के लिए एक अलग रूट होगा जिससे आम लोगो को दिक्कत ना हो।

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