परदे के पीछे की हकीकत -
एक ओर जहां राकेश टिकैत किसान आंदोलन का नेतृत्व करते हुए काफी आक्रामक रुख अपनाए हुए है , आंदोलन में किसान बिल की प्रतिलिपियां जलाई जा रही है। वही दूसरी ओर सरकार की तरफ से गेहूं की रिकॉर्ड खरीद हो रही है।
अभी तक करीब 44 लाख किसानों से 74000 करोड़ रुपए के करीब गेहूं कीखरीद हो चुकी है। खरीद के ये रुपए बिना किसी बिचौलिए की भूमिका से किसानो के खातों में सीधे पहुंच रहे है। गेहूं की फसल रिकॉर्ड एमएसपी पर हो रही है। गेहूं के अलावा कई मंडियों में सरसो 8000 रुपए प्रति क्विंटल तक बिक रही है। जबकि अगर देखा जाए तो सरसो का एमएसपी करीब 4600 रुपए है। फसलों को खरीद में रिकॉर्ड वृद्धि को देखते हुए ये किसान आंदोलन एक जनता को बेवकूफ बनाने का तरीका भर लगता ह।
परंतु ऐसा क्यों? इसका एक कारण ये भी है कि अब ये तथाकथित किसान आंदोलन से किसान अपना भला छोड़ भाजपा को हराने में लग गए है। इसी वजह से कई लोगो का विश्वास इस आंदोलन पर से उठ चुका है। कारण सिर्फ आंदोलन का राजनीतिकरण करना ही नही है , बल्कि कुछ अप्रिय घटनाएं हाल ही के कुछ महीनो में देश में हुई , वह भी एक बड़ा कारण है।
प्रमुख घटनाएं -
पहली घटना 26 जनवरी , जब भारत अपना गणतंत्र दिवस माना रहा था तभी किसानो ने ट्रैक्टर मार्च का आवाहन करते हुए राष्ट्रीय धरोहर जहां से हमारे माननीय प्रधानमंत्री तिरंगा फहराते है , ये किसान पूरी यात्रा का रुख मोड़ कर लाल किले पर पहुंच गए और जहां हमारा तिरंगा फहराया जाता है, वहा निशान साहिब का झंडा लगा दिया।
दूसरी घटनाएं भी देश को शर्मसार करती गई। हाल ही में कई बार इसी तथाकथित किसान आंदोलन से रेप , बदतमीजी , सेक्शुअल हैरेसमेंट जैसी घटनाएं भी सामने आई जो कही ना कही इस आंदोलन की आड़ में हो रही भयावता को दर्शाता है। हाल ही में 25 वर्षीय महिला जो की एक सोशल एक्टिविस्ट है उसने साथ हुए गैंग रेप का मामला भी सामने आया है।
कई न्यूज़ एंकर्स के साथ भी बदतमीजी को गई । परंतु बात को दबा दिया गया। लेकिन जब इस हद तक चीजे बढ़ने लगी फिर आंदोलन प्रमुख बैकफुट पर आ गए।
किसान आंदोलन अब पूरी तरह से राजनीतिक आंदोलन बन गया है। इसका ताजा उदाहरण जब राकेश टिकैत ने ममता बनर्जी से मिले तो उन्होंने एक ही बात दोहराई की जो बंगाल में हुआ उसे पंजाब और उत्तर प्रदेश में दोहराना है। पता नही वे इस बात से अनजान है या अनजान बन रहे है की अगर उनका आंदोलन असरदार होता तो भाजपा 3 सीट से 73 सीट पर नही आती। पर अब कही ना कही से आंदोलन एक किसान आंदोलन कम और एक राजनीतिक विरोध ज्यादा लग रहा है।
ये तो हम सब जानते है कि एग्रीकल्चर सेक्टर जो की देश जीडीपी में एक बड़ा हिस्सा जोड़ता है । यूनाइटेड किंगडम , अमेरिका जैसे राष्ट्र पहले ही इस बिल को अपना समर्थन दे चुके है । उनके अनुसार ये बिल भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए वरदान साबित हो सकता है। लेकिन भारत एक लोकतांत्रिक देश है , अगर किसी को बिल से कोई दिक्कत है तो उसे विरोध करने का पूरा हक है। मगर ये कैसा विरोध जिसमे आप हाईवे घेरकर वहां आसपास के गांवो के लोगों की रोजीरोटी पर अपना आंदोलन जारी रख रहे है , आसपास जो घटनाएं हो रही है ये कही से लेकर कही तक सही नही है।
पर सरकार भी शायद अब आरपार का मूड बना चुकी है। कृषि मंत्री साफ साफ कह चुके है कि अगर आपको बिल में कोई समस्या है तो उसे ठीक करने हेतु बिल में कुछ संशोधन किए जा सकते है परंतु बिल वापस नही होगा। उधर सरकार द्वारा एमएसपी बढ़ाए जाने से कई किसान वापस अपने खेत लौट रहे है। सरकार आंदोलन को कमजोर कर इसे समाप्त करवाना चाहती है। एक ओर फिर भी राकेश टिकैत आंदोलन जारी रखने पर जोर दे रहे है।
हाल ही में राकेश टिकैत एक बयान ने बहुत सुर्खिया बटोरी थी कि आने दो सरकार को बक्कल तार देंगे! हालांकि हुआ कुछ खास नहीं। टिकेट इसी आशा में की शायद वह पश्चिम बंगाल में जाकर इस बिल का विरोध करते हुए बीजेपी को हराने में मदद करेंगे , पता नही क्यों पर करने के मंसूबों के साथ जब वे बंगाल गए और कई सभाएं की इसके बाद के नतीजे बिल्कुल इसके उलट ही आ गए।
जब चुनाव खत्म होने के बाद मतगणना शुरू हुई तब शायद किसी ने सोचा भी नही होगा कि वो बीजेपी जिसके आजतक बंगाल के चुनाव में कुछ खास अच्छे आंकड़े नहीं आए थे वही बीजेपी इस बार टिकैत के जाने के बावजूद करीब 3–4 सीटो से करीब 80 सीटो पर पहुंच गई। ममता बनर्जी जिनकी पकड़ बंगाल में बहुत अच्छी थी वे भी अपनी महत्वपूर्ण सीट भी इस चुनाव में हार गई। ममता बनर्जी अपनी यह सीट अपनी ही पार्टी से अलग हुए शुबेंदु अधिकारी के हाथो गवां गई।
हालांकि उनकी पार्टी पर बहुमत से जीत गई परंतु इसी के साथ वे अपनी पार्टी को अध्यक्षा के अपनी सीट पर हार से बचा नही पाई। वैसे चुनावों में ऐसे उलटफेर हमें कई बार देखने को मिले है परंतु इस प्रकार हारना वह भी तब जब किसान आंदोलन की वजह से देश भर ने केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा किया जा रहा हो तब इसी हार मिलना शायद निराशजनक रहा परंतु उनके पास अब भी मुख्यमंत्री बनने का मौका है। उन्हे किसी और जिले से कोई सीट पर फिर से चुनाव लड़कर जीत दर्ज करनी होगी। को मुझे लगता है ज्यादा मुश्किल नहीं है।
खैर लौटते है किसान आंदोलन पर तो अभी तक जितने भी घटनाक्रम हुए है उनसे एक बात तो साफ है किसान आंदोलन का नेतृत्व करने वालो को इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि उनके आंदोलन का कोई और फायदा ना उठाने पाते और 26 जनवरी जैसे भयानक घटनाक्रम देश में फिर से पेश ना आए । ये देश की छवि को कई गुना नुकसान पहुंचाते है और एक लोकतंत्र में अच्छे नहीं है। अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी इसे घटनाक्रम भारतीय नागरिकों तथा भारतीय सरकार के प्रति अविश्वास का भाव बढ़ाते है।
एक भारतीय नागरिक होने के नाते मेरा और आप सबका यह कर्तव्य बनता है कि हम ज्यादा से ज्यादा जागरूकता पैदा करने की कोशिश करें ताकि फिर से इसी स्थिति देश में ना बनने पाए। #Modi_vs_manmohan_infrastructure_in_india
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