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केंद्र बनाम ट्विटर ( Twitter vs central govt.)

 अभी हाल ही में कांग्रेस के टूलकिट का मामला काफी सुर्खियों में रहा था। इसी टूलकिट को शेयर करते हुए बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने ट्वीट करते हुए कांग्रेस पर कटाक्ष करते हुए तीखी आलोचना की। मामला अभी जांच का विषय बना ही हुआ था की अचानक से संबित के ट्वीट को ट्विटर ने मैनिपुलेटेड मीडिया का टैग लगा दिया। 



ये पहली बार नही था जब ट्विटर ने केंद्र के खिलाफ कोई एक्शन लिया हो। एक समय जब किसान आंदोलन देश में चरम पर था तभी ट्विटर पर #modidecidefarmersgenocide (मोदी ने किसानों का नरसंहार करने का निश्चय किया है) केंद्र ने इस ट्वीट पर कड़ी आपत्ति जताई जिसे ट्विटर ने बोलने की आजादी के नाम पर अनसुना सा कर दिया। सोचने वाली  बात है, क्या ट्विटर ऐसे genocide जैसे ट्वीट्स अमेरिका में भी ट्रेंड पर रखता? शायद नही। 


      Narendra Modi- superspreder of Corona?


उल्लेखनीय है कि 2018 में दिए एक इंटरव्यू में जैक डोरसे (ट्विटर के सी ई ओ) ने ये माना था की वे लेफ्ट पार्टी के समर्थक है। और इस समय भारत में राइट विंग की पार्टी की सरकार है। क्या ये तो वजह नही जिस वजह से डोनाल्ड ट्रंप जो की एक राइट विंगर थे ,उनका ट्विटर अकाउंट परमानेंट सस्पेंड किया गया था और अब भारत के उप राष्ट्रपति के अकाउंट से ब्लू टिक हटाया गया है? खैर बात चाहे जो भी हो पर इस बार ट्विटर को अपनी गलती सुधारनी पड़ी, ओर वैंकेया नायडू जी के अकाउंट फिर से ब्लू टिक देना पड़ा।




मगर इसे इत्तेफाक कहना बेईमानी होगी , क्योंकि जब ट्विटर ने उप राष्ट्रपति के अकाउंट पर ब्लू टिक हटाया तभी उसने आरएसएस , उसके प्रमुख मोहन भागवत इत्यादी राइट विंगर लोगो के अकाउंट्स से भी ब्लू टिक हटाया गया है। ट्विटर ने अपनी सफाई में यह कारण सरकार को दिया की जिस अकाउंट से काफी लंबे समय से ट्वीट नही होता उनसे हम ब्लू टिक हटा लेते है। फिर भी आप देख सकते है, काफी सारे ऐसे अकाउंट्स अभी भी है जिन पर काफी लंबे समय से ट्वीट ना होने के बावजूद वो अभी भी ट्विटर पर ही है। और सोचने वाली बात यह भी है, कि भारत के उप राष्ट्रपति को भी वेरिफिकेशन देना जरूरी है? 


ट्विटर का ये रवैया कही ना कही ये दर्शाता है, कि ट्विटर एक biased ( (एक पार्टी की तरफ झुका हुआ) प्लेटफार्म है। पर इस बार लगता है केंद्र भी ट्विटर को आड़े हाथों लेने का विचार बना चुकी है। देखना यह होगा कि इस लड़ाई को ट्विटर कितना आगे लेकर जाना चाहता है? देखना ये भी दिलचस्प होगा कि ट्विटर भारत में बैन होता है या नही?

सवाल बहुत है, देखते आने वाले दिनों में क्या हालात बनते है। 

वैसे जब से ट्विटर को अमेरिकी मूल के ही एक दिग्गज बिजनेस टायकून एलन मस्क ने खरीदा है तब से शायद हालत बेहतर हुए है। बेहतर ट्विटर के मुनाफे के मद्देनजर नही बल्कि ट्विटर द्वारा सभी प्रकार लोगी को चाहे वह राइट विंग के हो या फिर लेफ्ट विंग के , मस्क ने यह आश्वासन दिलाया था कि अब ट्विटर एक पूर्ण रूप से पक्षपात के बिना सभी प्रकार के विचारो का सम्मान करेगा ।

इसी के मद्देनजर जब ट्विटर को मस्क ने अपने अधीन किया तब मस्क ने कई ऐसे दस्तावेजों को पब्लिक कर दिया जो ट्विटर ने पता नही किस वजह से प्राइवेट किए हुए थे। नतीजा यह निकला कि जब लोगो को पता चला की ट्विटर ने कइयों के ट्विटर अकाउंट और ट्वीट्स सिर्फ इसलिए हटा दिए क्योंकि ट्विटर नही मानता था कि उन्हें रहना चाहिए। भले ही इस कदम के दौरान उन्होंने लोगो के बोलने के हक तथा अपने विचारो को स्वतंत्रता पूर्वक रखने जिसे महत्वपूर्ण अधिकार से वंचित कर दिया। 

गौरतलब है कि जो अमेरिका दुनिया भर में लोकतंत्र को इतना बढ़ावा देता है उसी लोकतंत्र के एक महत्वपूर्ण हिस्से जिसे बोलने की आजादी कहते है ट्विटर द्वारा लोगो को उससे वंचित करने पर भी इसका संज्ञान नही लिया गया!

खैर अब जब चीज सार्वजनिक होना शुरू हुई तब सबसे पहले वहां की अदालतों ने इसका रुख किया और जब ट्विटर की ही एक कर्मचारी विजया गद्दे जिनका  इन सब वाकयो में एक महत्वपूर्ण योगदान था उनसे कोर्ट में कुछ प्रश्न पूछे जिनका उनके पास कोई उत्तर नही था। 

समझ नही कि इतनी बड़ी कंपनी जिसपर दुनियाभर की सरकारें अपनी राय रखती है । जो भी जानकारी साझा करनी होती है वह जानकारी ट्वीट के माध्यम से पहुंचती है। जिसका कर्तव्य है कि सभी के विचारो को पूर्ण स्थान मिले , सभी की राय साझा करने के माध्यम को बनने के बजाय ट्विटर ने एक विशेष प्रकार की श्रेणी चुन ली और उसी पर चलने लगा। 

बात चाहे ट्विटर की हो , फेसबुक की हो , इंस्टाग्राम की हो या फिर व्हाट्सएप जैसे दिग्गज प्लेटफार्म की जब आप एक ऐसे किसी प्लेटफार्म को श्रेणी में आ जाते है जहां एक बड़ी संख्या में लोग आपके प्लेटफार्म का इस्तेमाल करके अपनी राय साझा करने लगते है तो यह आपका मूल दायित्व बनता है कि आप लोगो का सम्मान करें और उनकी राय को तरजीह दें। चाहे फिर वह आपके विचारों से मेल खाता हो या नही। 

ये आपकी मजबूरी नहीं बल्कि आपका मूल दायित्व होना चाहिए कि आपका प्लेटफार्म किसी एक पार्टी या विंग को सपोर्ट ना करने पाएं। और फिर भी अगर आपको ऐसा लगता है कि ऐसा कुछ नही होना चाहिए तो फिर अपने प्लेटफार्म का इस्तेमाल करने वालो को भी आपको इस बात से अवगत कराना होगा कि यह प्लेटफार्म आपके राइट विंग या फिर कहें लेफ्ट विंग के विचारो से सहमत नही है और आपके कुछ भी ऐसा लिखने पर ट्विटर आपके अकाउंट को बंद कर सकता है। 

ऐसा करने से शायद लोग खुद को छला हुआ महसूस ना करे , और किसी किसी ऐसे प्लेटफार्म का रुख करें जो शायद उनके विचारो को अपने प्लेटफार्म के माध्यम से प्रकट करने दें। 

आशा करता हूं मस्क के खरीदने के कुछ समय बाद ट्विटर के मापदंडों में सुधार आएगा और ट्विटर एक बेहतर प्लेटफार्म बनकर उभरेगा। भारतीय सरकार क्या निर्णय लेती है यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन भारतीय एप कू की कुछ ही समय में बढ़ती लोकप्रियता से एक बात तो निश्चित तौर कर कही जा सकती है कि लोगो के मन में ट्विटर का दोहरा रवैया घर करता जा रहा है और परिणामस्वरूप लोग प्लेटफार्म ही बदलने लगे है। 

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